इस्लाम का उदय।


 खुदा के प्रति पूर्ण समर्पण ही इस्लाम है। इस्लाम का उदय मक्का में हुआ जिसका संस्थापक मोहम्मद साहब सुरेश जनजाति के थे। उनका जन्म 570 ई॰ में मक्का में हुआ।उनके पिता अब्दुल्ला की मृत्यु उनके जन्म से पूर्व ही हो गई थी। 6 वर्ष की अवस्था में उनकी माता अमीना का भी देहांत हो गया। अतः उनका पालन पोषण उनके चाचा अबू तालिब ने किया जो कबीले के स्वामी थे। मोहम्मद साहब का बाल्यावस्था निर्धनता में व्यतीत हुआ, क्योंकि उनके चाचा अबू तालिब की आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं थी। बचपन में मोहम्मद साहब बकरियों के समूहों की देखभाल करते थे। 25 वर्ष की अवस्था में उन्होंने एक 40 वर्षीय धनी महिला खतीजा से विवाह किया। विवाह के उपरांत भी हजरत मोहम्मद धार्मिक खोजों में लीन रहे।
    40 वर्ष की अवस्था में मोहम्मद साहब को एक देवदूत जिब्राइल का संदेश मिला जिसके फलस्वरूप उन्हें यह अनुभूति हुई कि वह एक नबी (सिद्ध पुरुष), और रसूल (देवदूत) हो गये तथा ईश्वर ने उन्हें अपने संदेशों का संसार में प्रचार करने के लिए भेजा है। उन्होंने अरब में प्रचलित अंधविश्वास व मूर्ति पूजा की घोर निंदा की। मूर्ति पूजक अरबों को यह बताया कि जिनकी वह पूजा करते हैं उनका कोई अस्तित्व नहीं है। बल्कि हम सबको अल्लाह में विश्वास करना  चाहिए।
    इस्लाम का आधार एकेश्वरवाद है। तीन वर्ष तक गुप्त रूप से इस्लाम का प्रचार करने के बाद हजरत मोहम्मद साहब को  खुलेआम प्रचार करने का दैवीय आदेश हुआ, फलस्वरूप उनका विरोध होना लाजमी था ।
    कुरैश कबीलो (मोहम्मद साहब के संबंधि-विरोधी) का मक्का पर अधिकार था जहां 360 मूर्तियां थी। इन्हीं मूर्तियों की आय से इस कबीले के लोगों (मोहम्मद साहब के संबंधि -विरोधी) का जीवन निर्वाह होता था। इन लोगों में मोहम्मद साहब का विरोध ही नहीं बल्कि उनके जीवन को अंत करने का भी प्रयत्न किया। इसी बीच मोहम्मद साहब की पत्नी खतीजा व चाचा अबू तालिब का 619 ई॰ में देहांत होगा। अब उन्हें ना तो परिवार से और ना ही समाज से किसी प्रकार की सहयोग मिलने की आश रह गयी, अतः उनकी स्थिति एक समाज बहिष्कृत व्यक्ति जैसी हो गयी।
    इसी बीच 622 ई॰  में उन्हें मदीना आने का आमंत्रण मिला और वे मदीना चले गए इसे हिजरत कहा गय। मोहम्मद साहब का मक्का त्यागकर मदीना जाने की स्मृति में 622 ई॰ से हिजरी संवत (Islamic calendar) का आरंभ हुआ।
    यहीं (मदीना में ) पवित्र कुरान की रचना हुई तथा यहीं पर उनकी शिक्षाओं को निश्चित रूप मिला। उन्होंने अपने अनुयायियों को यह उपदेश दिया कि - "अल्लाह एक है और मोहम्मद अल्लाह का पैगंबर है।"पैगंबर मोहम्मद अपने धर्म विरोधियों पर विजय प्राप्त करने के लिए युद्धौ और राजनीतिक गठबंधनों दोनों का सहारा लेते थे, वे उदार व क्षमाशील नीति का भी सहजता से पालन करते थे। अपने जीवन काल में उन्होंने कई युद्ध लड़े और अपनी सत्ता को सुदृढ़ किया और अपने विरोधियों पर विजय पाई ।
    बड़ी कठिनाइयों व परिश्रमों का सामना करते हुए 63 वर्ष की अवस्था में 632 ई॰ में पैगंबर मोहम्मद साहब का निधन हो गया

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